Fascination About भाग्य Vs कर्म
Fascination About भाग्य Vs कर्म
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हमारे ब्रह्मांड ने हमें इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए विभिन्न नियम स्थापित किए हैं। इनमें से एक है आकर्षण का नियम। यह नियम कहता है कि आप जो भी देते हैं, वह आपको मिलता है। कर्म इसी आधार पर काम करता है। हमारे प्रत्येक कार्य से ऊर्जा के निशान छूटते हैं, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। और ब्रह्मांड इस ऊर्जा को उसी प्रकार हम पर वापस दर्शाता है, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक।
यदि आपका सोचना है कि -“कर्म हमेशा भाग्य से बड़ा होता है!
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कर्म कितने प्रकार के होते हैं? किस प्रकार संचित कर्म जुड़ा होता है मनुष्य के भाग्य से?
संसार में तीन प्रकार के लोग हैं। एक भाग्यवादी, जो कि मानते हैं कि सब कुछ पहले से ही नियत है इसलिए पुरुषार्थ करके भी क्या बदल जाएगा। दूसरे हैं पुरुषार्थवादी, जिन्हें लगता है कि भाग्य कुछ नहीं होता, कर्म ही सब कुछ है। तीसरे होते हैं परमार्थी, जो परमअर्थ अर्थात परमात्मा को ही सब कुछ मानते हुए लाभ-हानि में सम रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। मनीषियों ने तीसरी श्रेणी के लोगों को उत्तम प्रवृत्ति का बताया है। ऐसे व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में आनंदमय अर्थात शांत भाव से जीवन-यापन करते हैं।
कर्म और भाग्य मे भाग्य बड़ा होता है,कर्म भी हम भाग्य अनुसार ही करते हैं
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आचार्य जी-अच्छा तो ये बताओ की बुरे कर्म करने से क्या बुरा होता है?
और खुशहाल जिन्दगी जी
मैं-तो फिर आचार्य जी आपने ज्योतिष क्यों सीखी? क्या आप इसे अपनी गलती मानते हैं कि आपने ज्योतिष सीखकर अपना समय बर्बाद किया, या जो भी आपसे ज्योतिष सीख रहे हैं वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?
कर्म को समझने का सबसे सरल तरीका यह है कि हम ब्रह्मांड को एक विशाल दर्पण के रूप में देखें और महसूस करें कि हम उसके सामने खड़े हैं। यह हमें जो कुछ भी करते हैं, उसका प्रतिबिंब दिखाता है। इसलिए हमारे विचार, बोले गए शब्द और किए गए कार्य सब हम पर उसी प्रकार से वापस आते हैं। लेकिन ये परिणाम सीधे या अप्रत्यक्ष हो सकते हैं।
अर्थात:- मेहनत से ही कार्य पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से नहीं। जैसे सोये हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता बल्कि शेर को स्वयं ही प्रयास करना here पड़ता है।
प्रेमानंद महाराज से जानिये कि क्या कर्म द्वारा भाग्य को बदला जा सकता है
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